शुक्रवार, अक्तूबर 14

बूंद जैसे ओस की हो


बूंद जैसे ओस की हो

जल रही है ज्योति भीतर
तिमिर पर घनघोर छाया,
स्रोत है अमृत का सुखकर
किन्तु मन तृप्ति न पाया !

औषधि के घट भरे हैं
वृक्ष सारे जो हरे हैं,
किन्तु रोगी तन हुए हैं
क्षुधा को हरना न आया !

एक मीठी प्यास जागे
उस अलख की आस जागे,
बस यही कर्त्तव्य भूला
जग तू सारा छान आया !

चाँद पर पहुँचा है मानव
किन्तु पृथ्वी को उजाड़ा,
रौंद डाले हरे जंगल
मानवों ने कहर ढ़ाया !

जहाँ धन ही देवता हो
कौन खोजे आत्मा को,
जहाँ मन ही बना राजा
ठगे क्यों न वहाँ माया !

माना थोड़ा सुख मिला है
बूंद जैसे ओस की हो,
कब टिका है भ्रम किसी का
तोड़ने ही काल आया !

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया |
    बधाई ||
    http://dineshkidillagi.blogspot.com/

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  2. जहाँ धन ही देवता हो
    कौन खोजे आत्मा को,
    जहाँ मन ही बना राजा
    ढगे क्यों न वहाँ माया !


    बहुत ख़ूबसूरत जज्बातों से सजी पोस्ट.....शानदार|

    अनीता जी शायद 'ढगे' की जगह 'ठगे' होना चाहिए था|

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  3. और हाँ....... अनीता जी मैं आपकी पुस्तकों का इंतज़ार करूँगा......आप को जब सहूलियत हो बोलियेगा मैं अपना पता दे दूँगा|

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  4. वाह वाह ……………बहुत सुन्दर बात कही है।

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  5. धन्यवाद, आप अपना पता भेज दें.....

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  6. एक मीठी प्यास जागे
    उस अलख की आस जागे,
    बस यही कर्त्तव्य भूला
    जग तू सारा छान आया !

    चाँद पर पहुँचा है मानव
    किन्तु पृथ्वी को उजाड़ा,
    रौंद डाले हरे जंगल
    मानवों ने कहर ढ़ाया !

    Bahut sundar aur sarthak panktiyan ... Anita Ji.
    Main bhi apki pustakein chahta hun. Kaise prapt kar sakta hun, batane ki kripa kariye.

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  7. चाँद पर पहुँचा है मानव
    किन्तु पृथ्वी को उजाड़ा,
    रौंद डाले हरे जंगल
    मानवों ने कहर ढ़ाया !

    बहुत सही बात कही है आपने।

    सादर

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  8. गूढ़ रहस्य है ..परमात्मा ने सुख को ओस की बूंद ही बना कर भेजता है. झंकृत सत्य.. ..

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  9. द्विवेदी जी आप भी अपना पता भेज दें, मैं पुस्तकें भेज दूँगी....
    ईमेल : anitanihalani@gmail.com

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  10. भ्रम तो टूट ही जाते हैं!
    सुन्दर रचना!

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