सारा जग अपना लगता है
लगन लगा दे सबको अपनी
प्रियतम निज रंग में बोड़ दे,
भीतर जो भी टूट गया था
सहज प्रेम से उसे जोड़ दे !
विषम कलुष कटुता भर ली थी
परम नाम की धारा धो दे,
जो अभाव भी भीतर काटे
अनुपम धन भर उसको खो दे !
अस्तित्त्व की कृपा हो अनुपम
संतुष्टि से भरे अंतर मन,
अथक हुए पग बढ़ते जायें
सोने सा चमके यह जीवन !
सुख आये या दुःख, प्रसाद हो
तुमसे ही आता है, प्रिय हो,
तू अपने ही निकट ला रहा
जो भी तुझको भाए, प्रिय हो !
छोड़ दिये सभी राग-विराग
सारा जग अपना लगता है,
भीतर से चट्टान उठ गयी
एक खजाना भी दिखता है !
जहाँ प्रेम है वहाँ परम है
कैसा भेद कैसा अलगाव,
पुलक जग रही जो तृण-तृण में
है चहुँ ओर तेरा ही भाव !
प्रेमिल पाठ पढ़ाते हो तुम
सारे जग को मीत बनाते,
सबके भीतर तुम ही बैठे
कर बहाने पास हो लाते !
बहुत सुन्दर भाव सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएंजहाँ प्रेम है वहाँ है तू ही
जवाब देंहटाएंकैसा भेद कहाँ अलगाव,
पुलक जगे जो तृण-तृण में
हो चहुँ ओर तेरा ही भाव !
bahut sundar bhavon se yukt kavita .aabhar
bahut sundar
जवाब देंहटाएंमुझमे क्या मोरा.........बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंप्रेम का पाठ पढ़ाते हो तुम
जवाब देंहटाएंसारे जग को प्रिय बनाते,
सबके भीतर तुम ही बैठे
कर बहाने पास हो लाते !दिल को छू हर एक पंक्ति.... हर बार की तरह.....
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
सुख आये या दुःख, प्रसाद हो
जवाब देंहटाएंतुमसे ही आता है, प्रिय हो,
तू अपने ही निकट ला रहा
जो भी तुझको भाए, प्रिय हो !
प्रेम के रस में पगी एक सुंदर रचना.
bahut sunder.
जवाब देंहटाएंआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 10-12-11. को । कृपया अवश्य पधारें और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें ..!!आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंप्रेम और प्रियतम के माध्यम से बहुत गहरी अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
आप सभी सुधी सहयात्रियों का हृदय से आभार!
जवाब देंहटाएंsaari maay prem ki...
जवाब देंहटाएंsaara prem bhi maaya se...
awesome...