जैसे कोई...
जैसे कोई बच्चा आँखें बंद कर ले
फिर कहे, “माँ तुम कहाँ चली गयीं ?”
तो माँ हँस देती है
जैसे कोई बड़ा
नाक पर चश्मा चढ़ाये हो
और खोजता हो उसी को
तो साथी हँस देता है
वैसे ही हम उसी में रहते हैं
और पूछते हैं तुम कहाँ हो
तो वह भी हँस देता होगा खिलखिलाकर
और तभी बरस उठती हैं बदलियाँ
झलक दिखाती हैं बिजलियाँ
महक उठती हैं फूलों की घाटियाँ
दौड़ पड़ती हैं सागर की तरफ
बलखाती नदियाँ
चमचमा उठती हैं
हिमखंडों से भरी उन्नत चोटियाँ......
वाह!!!
जवाब देंहटाएंशब्द नहीं खोज पा रही हूँ अनीता जी....किस तरह प्रशंसा करूँ आपकी रचना की....
बहुत प्यारे भाव..........
सादर.
सुंदर प्रस्तुति .... हम बाहर खोजते हैं .... काश खुद में ही झाँकें
जवाब देंहटाएंचमचमा उठती हैं
जवाब देंहटाएंहिमखंडों से भरी उन्नत चोटियाँ......
सकारात्मकता से लबरेज ....आनंदमयी प्रस्तुति ....!!
sundar prakritik prastuti.badhai.
जवाब देंहटाएंहम उसी में रहते हैं
जवाब देंहटाएंऔर पूछते हैं तुम कहाँ हो....
वाह! कितनी गहरी बात... सुन्दर रचना ....
सादर.
सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंआप सभी का दिल से शुक्रिया.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसुन्दर..खुद को कहाँ खोजे रे बंदा..
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