तेरा मेरा मेल हो कैसे
तू अनंत आकाश सरीखा
यह नन्हा दिल एक झमेला,
तू सनातन शांत सदा है
यहाँ विचारों का इक मेला,
तू सत्य है सदा एक सा
बदल रहा यहाँ हर पल खेला !
तू प्रेम है सुना यही है
यहाँ प्रेम सँग घृणा भी बसती,
देख भाल के ठोंक बजा के
होठों पर मुसकान ठहरती,
किसको दें किसको न दें
कितनी दें कितनी कम कर लें
भीतर रस्साकशी है चलती !
तू दयालु नित बाँट रहा है
यहाँ तो मन बस छांट रहा है
तेरा मेरा मेल हो कैसे
मन कैसे हो तेरे जैसे
तू तृप्त है संतोषी भी
यहाँ सदा दिल मांगे मोर
तू सबका अन्तर्यामी है
यहाँ खुद से भी हाल छुपाते
कुछ सदा भुलावे में रहते
कुछ बहला के गम भुलाते
तू दाता है दानी ज्ञानी
हम बचा-बचा रखते खाते
स्विस बैंकों के हम दीवाने
सड़ जाये भले गोदामों में
भूखों को अन्न नहीं देते
तू माखन चोर कहाये है
हम लाखों कोटि डकार गए
तेरा बस नाम ही प्यारा है
तुझसे कोई सरोकार नहीं
जब काम निकलता है उससे
तब तू भी हमें स्वीकार नहीं
तू नजर नहीं आता हमको
हमने विज्ञापन दे डाले
मंदिर में दान दिया था कुछ
पत्थर पे नाम खुदवा डाले
तू प्रेम करे बेशर्त सदा
हम सट्टेबाज बड़े शातिर
तुझको भी न हम छोड़ेंगे
कुछ कागज के नोटों खातिर
कभी नाश नहीं होता तेरा
तू अविनाशी अखंड सदा
हम बम बनाये जाते हैं
भाते हैं युद्ध प्रचंड सदा
तेरा मेरा मिलन क्या संभव
तू जीवन है और मृत्यु भी
अमृत भी तू और महा गरल
तू कठिन बड़ा और सरल भी तू
तू जग भी है जगदीश्वर भी
अरदास भी तू आशीष भी तू !
बहुत ही सुंदर भाव...सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...
जवाब देंहटाएंतू दयालु नित बाँट रहा है
जवाब देंहटाएंयहाँ तो मन बस छांट रहा है
तेरा मेरा मेल हो कैसे
मन कैसे हो तेरे जैसे ...
प्रभु की प्रार्थना सरीखी ... मन कों निश्छल कर के लिखी सुन्दर रचना ...
तू दयालु नित बाँट रहा है
जवाब देंहटाएंयहाँ तो मन बस छांट रहा है
तेरा मेरा मेल हो कैसे
सब भेद रेखांकित करती गयी कविता!
कटु सत्य ,फिर भी बार - बार पढ़ने को मन होता है.ऐसी मधुर है ये आराधना रुपी कविता.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अनीता जी...
जवाब देंहटाएंतू सबका अन्तर्यामी है
यहाँ खुद से भी हाल छुपाते
कुछ सदा भुलावे में रहते
कुछ बहला के गम भुलाते
तू दाता है दानी ज्ञानी
हम बचा-बचा रखते खाते
नतमस्तक हूँ..आपकी लेखनी के आगे.
अनु
बेहतरीन और लाजवाब है शायद ही कुछ बचा हो इस कविता से.....हैट्स ऑफ इसके लिए।
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