घटता है जो इक ही पल में
कभी अचानक झर जाता ज्यों
मेघ भरा हो भाव नीर से,
रिस जाता अमि अंतर घट का
रहा अछूता जो पीड़ा से !
सहज कभी पुरवाई बहती
खुल जाते सब बंद कपाट,
भीतर बाहर मधु गंध इक
उमड़ संवारे प्राण सपाट !
घोर तिमिर में द्युति लहर ज्यों
पथ प्रशस्त कर देती पल में,
भर जाता अनुराग अनोखा
कोई आकर हृदय विकल में !
मुस्काता ज्यों शशि झील में
झलक कभी आ जाती उसकी,
स्मृति नहीं, ना ही भावना
घटता है जो इक ही पल में !
बहुत सार्थक और प्रभावी रचना...
जवाब देंहटाएंहाँ ,सार्थक पल का अपना महत्व है .
जवाब देंहटाएंadbhut anoobhooti se yukt rachna .aabhar
जवाब देंहटाएंआपको पढ़कर अंतर घट अमि से भर सा जाता है.. अति सुन्दर कृति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंकैलाश जी, प्रतिभा जी, शालिनी जी, अमृता जी, माहेश्वरी जी, अंकुर जी, ओंकार जी, सतीश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंआपको पढना सदा ही रुचिकर है |
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