अब जब कि
अब जब कि हो गयी है सुबह 
क्यों अंधेरों का जिक्र करें, 
चुन डाले हैं पथ से कंटक सारे 
क्यों पावों की चुभन से डरें !
अब जब कि छाया है मधुमास 
अँधेरी सर्द रातों को भूल ही जाएँ, 
खिले हैं फूलों के गुंचे हर सूं
क्यों दर्द को गुनगुनाएं !
अब जब कि धो डाला है मन का आंगन 
आँधियां धूल भरी क्यों याद रहें,
सुवासित है हर कोना वहाँ 
क्यों कोई फरियाद आये ! 
अब जब कि हो गया है मिलन 
विरह में नैन क्यों डबडबायें 
बाँधा है बंधन अटूट एक 
भय दूरी का क्यों सताए ! 

यहां आकर सुवासित हो जाता है मन ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमिल गया मन को विश्राम!
जवाब देंहटाएं