प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
आज ही इस वर्ष की पहली यात्रा पर निकलना है, सो आने वाले शिवरात्रि के
पर्व के लिए शुभकामना के साथ दो सप्ताहों के लिए विदा.
ब्रह्मा रचते, विष्णु पालक, हे शिव ! तुम हो संहारक
तीनों देव बसें मानव में तीनों जन-जन उद्धारक !
किन्तु आज शक्ति के मद में, भुला दिये मूल्य मानव ने
स्व-विनाश की करे व्यवस्था, जगह देव की ली दानव ने !
दुरूपयोग सृजन शक्ति का, व्यर्थ आणविक अस्त्र बनाये
पंचतत्व को करता दूषित, अपनी बुद्धि पर इतराए !
पालन करना भूल गया वह, विष्णु को है दिया सुला
असुरों का ही खेल चल रहा, देवत्व को दिया भुला !
हे शिव ! प्रकटो, मृत हो कण-कण, नव जीवन पुनः पाये
सड़ा गला जो भी है बासी, हो पुनर्गठित खिल जाये !
हे काल पुरुष ! हे महाकाल ! हे प्रलयंकर ! हे अभयंकर !
कर दो लीला, जड़ हो चेतन व्यापे विप्लव, हे अग्निधर !
सदियों से जो लगी समाधि, तोड़ नेत्र खोलो अपना
कल्याणमय हे शिव शम्भु ! परिवर्तन न रहे सपना !
तुम महादेव ! हे देव देव ! कर तांडव सृष्टि को बदलो
जल जाये लोभ का असुर आज, चेतना अंतर की बदलो !
हे पशुपति ! पशुत्व मिटाओ मानव की गरिमा लौटे
अज्ञान मिटे, अमृत बरसे गुमी हुई महिमा लौटे !
सर्प धर ! हे सोमेश्वर ! प्रकटो हे सौम्य चन्द्रशेखर !
मुंडमाल, जटा धारी, हे त्र्यम्बकम ! हे विश्वेश्वर !
तुम शमशान की राख लपेटे वैरागी भोले बाबा !
हे नीलकंठ ! गंगाधारी ! स्थिर मना, हे सुखदाता !
तुम करो गर्जना आज पुनः, हो जाये महा प्रलय भीषण
हे बाघम्बर ! डमरू बोले, हो जाये विलय हर एक दूषण !
शुभ शक्ति जगे यह देश बढ़े सन्मार्ग चलें हर नर-नारी
हे अर्धनारीश्वर ! हे महेश ! हे निराकार ! हे त्रिपुरारी !
धर्म तुम्हारा सुंदर वाहन, नंदी वाहक ! हे रसराज !
हे अनादि ! अगम ! अगोचर ! काल भैरव ! हे नटराज !
जय भोले ...
जवाब देंहटाएंसार्थक भाव लिए सुन्दर रचना ...
स्वागत व आभार!
हटाएंआपकी यात्रा सफल एवं मंगलमय हो !
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया!
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