गुरूजी के जन्मदिन पर
शब्द नहीं ऐसे हैं जग में
जो तेरी महिमा गा पायें,
भाव अगर गहरे भी हों तो
व्यक्त हृदय कैसे कर पायें !
'तू' क्या है यह तुम्हीं जानते
अथवा तो ऊपरवाला ही,
क्या कहती मुस्कान अधर की
जाने कोई मतवाला ही !
जाने कितने राज छिपाए
मंद-मंद मुस्कातीं ऑंखें,
अन्तरिक्ष में उड़ता फिरता
मन मनहर लगा नव पांखें !
सबके कष्ट हरे जाएँ बस
यही बसा दिल में तेरे है,
सबके अधर सदा मुस्काएं
गीत यही तूने टेरे हैं !
लाखों जीवन पोषित होते
करुणा सहज भिगोती मन को,
हाथ हजारों श्रम करते हैं
सहज प्रेरणा देती उनको !
तेरा आना सफल हुआ है
भारत का मस्तक दमकाया,
नेहज्योति जला कर जग में
खुशियों का उजास फैलाया !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " हिंदी भाषी होने पर अभिमान कीजिये " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार शिवम जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गुरु गान ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकविता जी व ओंकार जी, स्वागत व आभार !
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