जिन्दगी हर पल बुलाती
किस कदर भटके हुए से 
राह भूले चल रहे हम, 
होश खोया बेखुदी में 
लुगदियों से गल रहे हम !
रौशनी थी, था उजाला 
पर अंधेरों में भटकते,
जिन्दगी हर पल बुलाती
अनसुनी हर बार करते !
चाहतों के जाल में ही 
घिरा सा मन बुने सपना, 
पा लिये जो पल सुकूं के 
नहीं जाना मोल उनका ! 
दर्द का सामां खरीदा 
ख़ुशी की चूनर ओढ़ाई,
विमल सरिता बह रही थी 
पोखरी ही उर समाई !
भेद जाने कौन इसका 
बात जो पूरी खुली है,  
मन को ही मंजिल समझते 
आत्मा सबको मिली है !

 
Ato Sundar, Samvedansheel.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार विकेश जी !
हटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
जवाब देंहटाएंबात खुली ही भेद सच में कोई जान नहीं पाता है । अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमृता जी !
हटाएंइस भेद को जानना आसान नहीं ... ज्ञानी ही जान पाता है ...
जवाब देंहटाएंज्ञानी बनने का कर्त्तव्य ही तो हरेक को निभाना है
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