हिमालय की यात्रा के बाद
पर्वतों को छूकर
हम लौट आये हैं
स्वप्न जो संजोये थे
पूर्ण कर उन्हें
यादों में समेट
लाये हैं !
कदम-कदम पर
भय की हार
आस्था की जीत हुई
हर पीड़ा, हर चुनौती
सुख और आनंद में
बदलते देख
हम लौट आये हैं !
भीषण ठंड में
पत्थर ढोती बालायें
ढोते भारी बोझ
टेढ़े अनगढ़ रास्तों पर
घोड़े व खच्चर
उन्हें चढ़ते-उतरते देख
हम लौट आये हैं !
मानव की शक्ति में
जुड़ जाती परम शक्ति
वृद्ध होते जनों को
विश्वास की डगर पर
कदम बढ़ाते देख
हम लौट आये हैं !
bahut sundar rachna!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंहिमालय की यात्रा के बाद ऊर्जावान ,सकारात्मकता से परिपूर्ण ताजगी भरा हवा का झोंका लेकर लौटना सुखद लगा।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी!
हटाएंसुन्दर 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुंदर यात्रा
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंनकारात्मकता के माहौल में सकारात्मक विचारों की बहुत जरूरत है |
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार जोशी जी, आपकी क़लम से शब्द की जगह एक वाक्य का निकलना बड़ी बात है
हटाएंहिमालय की डगर पर चलना उसके दर्शन को अनुभव करना जीवन में सकारात्मकता का प्रतीक है ।आपने अपने अनुभव को गागर में सागर की तरह कविता के माध्यम से साकार किया है । पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा है मीना जी, हिमालय दर्शन मन को विस्तृत कर देता है, स्वागत व आभार इस सुंदर टिपण्णी के लिए!
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