बचपन
लौटा था उस पल में
बचपन को
ढूँढा यादों में
बाल दिवस पर नगमे गाये,
मन के गलियारों में कितने
साथी-संगी खड़े दिखाए !
रोते हुए किसी बच्चे के
पोँछे आँसू और हँसाया,
नन्ही सी ऊँगली इक थामी
दूर गगन में चाँद दिखाया !
बचपन लौटा था उस पल में
भीतर कोई खेल रहा था,
बाहर मुस्काती थीं आँखें
जीवन लास्य उड़ेल रहा था !
फुटपाथों पर बीते बचपन
इससे बड़ी न पीड़ा होगी,
खिल सकती थी जो बगिया में
शैशव में ही कली तोड़ दी !
होनहार बिरवान सभी हैं
जरा उन्हें सिखलाना होगा,
बचपन खो जाये न अधखिला
मार्ग सही दिखलाना होगा !
तन उर्जित है जोश भरा मन
बन कुम्हार बस गढ़ना भर है,
शिशु के भीतर छुपा युवा है
दो चार कदम बढ़ना भर है !
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ओंकार जी !
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