बापू के नाम एक पत्र
हुए डेढ़ सौ वर्ष
आज, जब वसुंधरा पर तुम थे आए
देवदूत बन घोर
तिमिर में, बने प्रकाश पुंज मुस्काए !
जाने किस माटी के
बने थे, सत्य की इक मशाल जलाई
कोटि-कोटि भारत
वंशी हित, निज सुख-सपन की बलि चढ़ाई !
कोमल पुष्प सा
अंतर किन्तु, फौलादी संकल्प जगाये
भारत की जनता को
फिर से, मुक्त गगन के स्वप्न दिखाए !
देवभूमि भारत कैसा
हो, इसकी नींव तुम्हीं ने रखी
दूर गाँव के
सन्नाटे में, हर झोंपड़ी हो सजी हुई !
दीन-हीन दुर्बल न
रहें वे, हों किसान अथवा मजदूर
समुचित श्रम का
प्रतिदान मिले, वे समर्थ बनें न कि मजबूर !
तन पर वस्त्र, आश्रय सुंदर, शिक्षा
का सम अधिकार मिले
गाँव-शहर में हर
व्यक्ति को, सहज ही राष्ट्र का प्यार मिले !
एक देश में रहने
वाले, एक सूत्र में बंधे सभी हैं
संविधान की मूल
आत्मा, समता और बन्धुता ही हैं !
बापू ! आज हम
फख्र से कहते, भारत ने करवट ली है
उसी राह पर चला
गर्व से, नींव जिसकी तुमने रखी है !
स्त्री-पुरुष
वृद्ध-युवा सभी, भारतभू का निर्माण कर रहे
आदर्शों से
प्रेरित नेता, उनमें नव उत्साह भर रहे !
आज गर्व से कह
सकते हैं, बापू के सपनों का भारत
दुनिया जिसे
निहार रही है, कदम बढ़ाता हँसता भारत !
गांधी जी ने स्वयं जल कर देश के लिए कार्य किया पर आज उसके अनुयायी उनके नाम पर स्वार्थ कर रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंकाश बापू के आदर्श पर चलें सभी ...
आपकी बात सही हो सकती है पर औरों की वे जानें हमसे जितना बन पड़े करें और स्वयं को बापू के अनुयायी बना लें..आभार !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.01.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3233 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंयथार्थ अभिव्यक्ति ........बेहतरीन रचना ....आदरणीया
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार रवीन्द्र जी !
हटाएंसूचना के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बापू को सच्ची श्रद्धांजलि है,बहुत सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंबधाई।
स्वागत व आभार कुसुम जी !
हटाएंकोमल पुष्प सा अंतर किन्तु, फौलादी संकल्प जगाये
जवाब देंहटाएंभारत की जनता को फिर से, मुक्त गगन के स्वप्न दिखाए
बहुत ही लाजवाब...
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 31 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1294 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
सादर सूचनार्थ।
देर से दी गयी सूचना के लिये क्षमा कीजियेगा।
बहुत बहुत आभार रवीन्द्र जी !
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