कभी ख़ुशी कभी गम
तन जाती हैं शिराएँ जब भी
सिर की
खो जाता है पल भर को चैन भी
मन का
जाने कितना गहरा दर्द है या
अहंकार भारी
बिसर जाती है किन्हीं
परिस्थितियों में
सारी की सारी होशियारी...
प्रकृति सिखाये जाती है पाठ
नित नये
हम हैं कि पिछला पढ़ा रोज
भुला देते हैं
फिसड्डी छात्र की तरह
फिर अध्यापक की तरफ हाथ बढ़ा
देते हैं !
वह भी असीम धैर्यशाली है
सिखाये जाएगी
जब तक भेजे में सच्ची बात
नहीं समाएगी
हार नहीं मानेगी वह इतना तो
तय है
अब, तब तक हमें जलना है
जब तक मन में भय है..
जिस दिन खो जाएँगी सारी
सीमाएं
अहंकार पिघल जायेगा
खुद में ही सारा आलम नजर आ
जायेगा
उस दिन वह भी विदा ले लेगी
मुस्कुराते हुए
तब तक रहना है मन को
कभी ख़ुशी कभी गम के गीत
गाते हुए..
सत्य में अहंकार परम सत्य के बीच में बहुत ऊँची दीवार है... बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कैलाश जी !
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