गंध और सुगंध
जब मन द्वेष के धुंए से भर
जाये
या भीतर कोई चाह जगे
अपने को खोजने की थोड़ी
कोशिश करें
यह गंध कहाँ से आ रही है ?
दबी होगी कहीं कोई
दुर्वासना
किसी प्रतिशोध की भावना
कोई अपमान जो चुभा हो गहरे
कभी
सारी गंधें वहीं जन्म लेती
हैं
जब नहीं रहेगी कोई आकांक्षा
हार और जीत की कामना
मिट जाएगी हर उलझन
खिल जायेंगे ध्यान के सुमन
और तब नहीं पूछना होगा
यह सुगंध कहाँ से आ रही है ?
क्या बात लिखी है .... गंध भीतर के द्वेष से ही उपजती है और जहाँ सब कुछ मिट जाता अहि ... प्रेम हिलोरें लेता है ...
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