नमन तुझी को
तेरे ही कदमों
में सिर यह झुकाया है
तुझमें ही नैन ने
सारा जग पाया है,
तुझपे ही वारी
हूँ दिल को लुटाया है
तू ही तू बस अंतर.. मन में समाया है !
आने में देर की
भटकन थी राहों में
फूलों के झुरमुटे
खोया उर चाहों में,
कंटक न देखे थे
सुख सोया आहों में
दरिया इक बहता था
तेरी निगाहों में !
तुझसे ही तन पाया
तुझसे ही मिला मन
सृष्टि की रचना
में तेरा ही है नर्तन,
तुझसे ही
आच्छादित जग के सारे कण
अद्भुत हर वर्तन
है अद्भुत अतुल सर्जन !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भक्तिमय अभिव्यक्ति।
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