देवी का आगमन सुशोभन
देवी दुर्गा जय महेश्वरी
राजेश्वरी, मात जगदम्बा,
आश्विन शुक्ल नवरात्रि शारद
अद्भुत उत्सव कालरात्रि का !
देवी का आगमन सुशोभन
उतना ही है भव्य प्रतिगमन,
जगह-जगह पंडाल सजे हैं
करते बाल, युवा सब नर्तन !
गूंजे घंटनाद व निनाद
सजे मार्ग, मंदिर कंगूरे,
शक्ति बिन शिव हों नहीं पूरे
सृष्टि कार्य सब रहें अधूरे !
इच्छा, क्रिया, ज्ञान शक्ति तुम्हीं
अन्नपूर्णा, विशालाक्षी,
कोटिसूर्य सम काँति धारिणी
शांतिस्वरूप, आद्याशक्ति !
विनाश किये मुंड और चंड,
ज्योतिर्मयी, जगतव्यापिनी,
कुंडलिनी शक्ति स्वरूपा माँ
महिषा असुरमर्दिनी प्रचंड !
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०७-१०-२०२१) को
'प्रेम ऐसा ही होता है'(चर्चा अंक-४२१०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार!
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय , जय माता दी ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंदेवी महिमा का अभूतपूर्व वर्णन ।बहुत सुंदर सृजन ।आपको नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएँ जिज्ञासा जी!
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