तीन विचार
अब
मंदिर तोड़े गए
पुस्तकालय जलाए गए
अधिकारों से वंचित किया गया
मारा गया
कठोरता की सीमाएँ लांघी गयीं
ग़ुलाम बनाया गया, बेचा गया
अब बहुत हुआ, अब और नहीं
अब परिवर्तन अवश्यंभावी है !
मन
शिकायतों का पुलिंदा बना अगर मन
अपनी बस अपनी ही चलाए जाता,
चीजें जैसी हैं वैसी कहाँ देखे
महज ज़िद का मुलम्मा चढ़ाए जाता !
छिपा इश्क का समुंदर गहराई में
न भीगे खुद उसमें न जग को डुबाए,
बना महरूम अपने ही ख़ज़ानों से
अपने ही हाथों से खुद को सताए !
परिवार
दो में होता है प्यार
पर तीन से बनता है परिवार
दो बिंदु जुड़ते हैं
तो एक पंक्ति का जन्म होता है
पर तीसरा बिंदु बना सकता है वृत्त
जिसमें भ्रमण करती है ऊर्जा
माता-पिता और संतान के प्रेम की
पिता देता है असीम प्रेम माँ को
संतान माँ के वात्सल्य से सिंचित होती है
और देती है सारा निर्दोष प्रेम पिता को
और इस तरह एक वलय में घूमता है स्नेह
प्रीत का जो वृक्ष लगाया था युगों पूर्व
शिव और पार्वती ने
उसकी शाखाएँ आज भी पल्लवित हो रही हैं !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-4-22) को "संस्कार तुम्हारे"(चर्चा अंक 4411) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएं