उर तोड़े हर बंधन
जीवन में छंद बहे
मन में मकरंद गहें,
रस धार झरे अविरत
कान्हा यदुनंद कहें !
श्वासों में सुमिरन हो
नयनों से हो वंदन,
स्पंदित हों प्राण सदा
उर तोड़े हर बंधन !
जो दिखता इक भ्रम है
मिथ्या में क्या श्रम है,
दुर्गम है सच का पथ
मर कर मिटता क्रम है !
मरता भी कौन भला
पहले ही जो मृत है,
मिटकर भी शेष रहे
निजता ही शाश्वत है !
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