पथ दिखाता चाँद नभ में
एक ज़रिया है कलम यह
हाथ भी थामे इसे जो,
कौन जो लिखवा रहा है
लिख रहा जो कौन है वो !
भाव बनकर जो उमड़ता
बादलों सा कभी उर में,
लहलहाती है फसल फिर
अक्षरों की तब मनस में !
कभी सूखा मरुथलों सा
ज्यों शब्द भी गुम हो गये,
हाथ में अपने कहाँ कुछ
थाम ली जब डोर उसने !
चाह फिर क्योंकर जगायें
हो रहा जो वही शुभ है,
पथ दिखाता चाँद नभ में
सूर्य उतरा धरा पर है !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 नवंबर 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार हरीश जी !
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