शुक्रवार, दिसंबर 8

गुलमर्ग की यादें - २

चिनार की छाँव में -५


गुलमर्ग की यादें - २


आज हमारी यात्रा का पाँचवा दिन है। गंडोला राइड गुलमर्ग का मुख्य आकर्षण है। यह एशिया की सबसे ऊंची और दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची केबल कार परियोजना है। गंडोला कार एक बार में छह लोगों और प्रति घंटे 600 लोगों को ले जा सकती है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर सरकार और फ्रांसीसी फर्म पोमागल्स्की के बीच एक संयुक्त उद्यम है। हमें गंडोला राइड के प्रथम फ़ेज़ के टिकट मिल गये थे, किंतु दूसरे फ़ेज़ के टिकट नहीं मिल पाये। एक कुशल गाइड हैदर को साथ लेकर हमने पैदल यात्रा आरम्भ की। ऊँची-नीची पथरीली राहों पर लगभग एक घंटा चलते हुए हम साढ़े तेरह हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित उस स्थान पर पहुँचे जहां से पहाड़ों पर गिरी बर्फ दिखाई देने लगी। अनेक यात्री घोड़े पर आये थे। क़हवा की एक दुकान वहाँ भी खुली थी। सभी ने इस सुंदर दृश्य का आनंद लिया और बर्फ के गोले बनाकर एक-दूसरे पर डाले। एक दक्ष फ़ोटोग्राफ़र से उन पलों को कैमरे में क़ैद करवाया। इसके बाद वापसी की यात्रा आरंभ हुई। गमबूट पहनकर पर्वतों पर चढ़ाई व उतराई का यह सभी का पहला अनुभव था, जो काफ़ी रोमांचक था। 

वापस आकर हमें एलओसी देखने जाना था, अर्थात भारत-पाकिस्तान की सीमा रेखा। ‘बूटा पथरी’ नामक स्थान तक गाड़ी जाती है, उसके आगे पाँच किमी का रास्ता पैदल या घोड़े पर तय किया जा सकता है।गुलमर्ग से दस किलोमीटर दूर “बूटा पथरी” एक शांत प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर स्थान है जो नागिन घाटी में स्थित है। यहाँ भी सुरम्य घास के मैदान और शीतल जल की धाराओं के दर्शन होते हैं। यहाँ तक जाने वाली सड़क मनमोहक दृश्यों और देवदार के जंगलों से घिरी हुई है। यहाँ जाने के लिए सेना से अनुमति लेनी पड़ती है, सेना की एक चौकी से भी गुजरना पड़ता है। दानिश हमारा गाइड बना और बूटा पथरी के आगे हम पैदल ही चल पड़े। लगभग चालीस मिनट हरे-भरे पहाड़ी सुंदर रास्तों पर चढ़ते-उतरते हम केवल उस स्थान तक ही पहुँच पाये जहां से दूर से एलओसी की सीमा दिखायी देती है।भोजन का वक्त हो गया था, थकान भी हो रही थी और समय की कमी के कारण हम वहीं से वापस लौट पड़े। टनमर्ग में गमबूट वापस करते हुए भोजन के लिए एक ढाबे में रुके।

शाम के पौने आठ बजे हैं, अभी कुछ देर पहले हम सोनमर्ग पहुँचे हैं। गुलमर्ग से साढ़े तीन बजे रवाना हुए थे। पहाड़ों में अंधेरा शीघ्र हो जाता है, सिंद नदी, पर्वत शृंखलाएँ, व आकाश की नीलिमा देख नहीं पाये।कल वापसी के समय जब हम श्रीनगर जा रहे होंगे, तब अवश्य ही इस सुंदर रास्ते का आनंद लेंगे, जिसके बारे में ड्राइवर ने बहुत तारीफ़ की है। यहाँ हम होटल राह विला में ठहरे हैं। आते ही गर्मागर्म कहवा पेश किया गया, जिसमें महीन कतरे हुए बादाम डाले गये थे।


सुबह नींद पाँच बजे ही खुल गई थी। तापमान २ डिग्री था, सो ढेर सारे गर्म कपड़े लादे हुए प्रात: भ्रमण के लिए कमरे से बाहर सात बजे आये। होटल से बाहर जाते ही सड़क के पार सिंद नदी बह रही थी। शोर मचाती हुई तीव्र गति से बहती दूधिया जल की धार अति पावन लग रही थी। सामने सूर्य की प्रथम किरणों के स्पर्श से चमकती हुई हिम श्रृखलाएँ थीं, उन उच्च चोटियों की तस्वीरें कैमरे में क़ैद हो गयीं पर उनकी भव्यता और सौंदर्य को केवल अनुभव ही किया जा सकता है। ठंड का अहसास अब जरा भी नहीं हो रहा था। वहीं कुछ ग्रामीण घर भी दिखायी दिये, जिनसे निकलती हुई कुछ महिलाओं को देखकर उनसे सामान्य बातचीत आरम्भ की। वे अपनी बकरियों के लिए चारा लेने जा रही थीं।  


दस बजे होटल से निकले और सोनमर्ग से मात्र पंद्रह किमी दूर स्थित प्रसिद्ध जोजीला पास और ज़ीरो पॉइंट देखने के लिए स्थानीय जीप में रवाना हुए। ११,५७५ फ़ीट ऊँचाई पर स्थित यह दर्रा कश्मीर और लद्दाख को जोड़ता है। हर साल सर्दियों में इसे बंद कर दिया जाता है। यहाँ पर अब एक टनल का निर्माण किया जा रहा है जिससे साल भर लोगों का आवागमन चलता रहेगा।बर्फ से ढके पर्वतों पर यहाँ भी अनेक पर्यटक तस्वीरें उतरवा रहे थे, एक फ़ोटोग्राफ़र ने हमारे समूह की भी कुछ यादगार तस्वीरें खींचीं।दो बजे हम नीचे उतर आये।रास्ते में कश्मीर का अंतिम गाँव देखा। 


10 टिप्‍पणियां:

  1. कश्मीर की सुन्दर वादियों जैसी नायाब पोस्ट । अति सुन्दर!!

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  2. आपकी लेखनी के माध्यम से हम भी सुंदर वादियों में घूम आये , सादर नमन आपको

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    1. आप जैसे पाठक पाकर ही लगता है श्रम सार्थक हुआ, आभार !

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  3. खूबसूरत गुलमर्ग ... आपकी नज़र से देखना अच्छा लगा ...

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  4. मेरे परिवार के लोग भी अभी घूमकर आए हैं, आपकी नज़र से पढ़ रही और उनसे सुन रही। मज़े हैं 🥰 बहुत सुंदर मनोहारी लेखन!

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    1. वाह ! यह तो बहुत अच्छा है, आपको कश्मीर यात्रा का आनंद घर बैठे मिल रहा है

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