शनिवार, दिसंबर 23

मेघा ढूँढें आसमान को

मेघा ढूँढें आसमान को 


मंज़िल पर ही बैठ पूछता 

और कहाँ ? कितना जाना है ?

क्यों न कहें उर को दीवाना 

अब तक भेद नहीं जाना है !


सागर में रहकर ज्यों लहरें 

घर का पता पूछती मिलतीं,

मेघा ढूँढें आसमान को 

घोर घटाएँ नीर खोजतीं !


लिए प्रेम का एक सरोवर 

प्यासा उर प्यासा रह जाता, 

पनघट तीर खड़ा है राही 

इधर-उधर तक टोह लगाता !


भीतर एक आँख जगती है 

कोई साथ चला करता है, 

देख न पाये चाहे उसको 

योग-क्षेम धारण करता है !


आराध्य बना लेगा अंतर 

मस्तक जिस दिन झुक जाएगा, 

गीत समर्पण के फूटेंगे  

प्राणों में बसंत छायेगा !


14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. खेल तो अंतर का ही है बस ... उसे समझाना आसान कहाँ ...

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