अपना-अपना स्वप्न देखते
एक चक्र सम सारा जीवन
जन्म-मरण पर जो अवलंबित,
एक ऊर्जा अवनरत स्पंदित
अविचल, निर्मल सदा अखंडित !
एक बिंदु से शुरू हुआ था
वहीं लौट कर फिर जाता है,
किन्तु पुनः पाकर नव जीवन
नए कलेवर में आता है !
पंछी, मौसम, जीव सभी तो
इसी चक्र से बँधे हुए हैं ,
अपना-अपना स्वप्न देखते
नयन सभी के मुँदे हुए हैं !
हुई शाम तो लगीं अजानें
घंटनाद कहीं जलता धूप ,
कहीं आरती, वन्दन, अर्चन
कहीं सजा महा सुंदर रूप !
एक दिवस अब खो जायेगा
समा काल के भीषण मुख में,
कभी लौट कर न आयेगा
बीता चाहे सुख में दुःख में !
एक रात्रि होगी अन्तिम भी
तन का दीपक बुझा जा रहा,
यही गगन तब भी तो होगा
पल-पल करते समय जा रहा !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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