शुक्रवार, जून 7

एक कतरा प्रेम

एक कतरा प्रेम 


बचपन में हम झगड़ते हैं 

यौवन में कुछ न कुछ पकड़ते हैं 

वह तो बाद में पता चलता है 

हक़ीक़त में जिसकी तलाश है 

वह न झगड़ने से मिलती है

 न पकड़ने से !


वह तो हवाओं में 

झूमने की कला है !


बारिश में भीगने 

आँखों से बतियाने 

हाथ में हाथ डाले 

हरी घास पर 

डोलने में हर बार 

भीतर कुछ पला है !


जो न था पास, जब

कई अपने पीछे छूट गये 

कुछ सपने बेवजह ही टूट गये !

 

सत्य है राम का नाम

 सुना न जाने कितनी ही बार 

 पर क्यों फुला लिया मुँह 

जब आये थे राम प्रेम बनकर

जीवन पथ पर  राह दिखाने !


जिस प्रेम का एक कतरा भी 

छू जाये मन को  

तो गूँजने लगते हैं मीठे तराने !


उस एक के लिए ही 

हर झगड़ना था शायद 

उसे ही पकड़ना था 

अब जाना है राज दिल ने 

यूँ ही ‘मैं’ का वह अकड़ना था  !




8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 08 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  2. हवाओं में झूमने की कला ! यही आ जाए तो क्या कहना !

    जवाब देंहटाएं