अब चलो, पर्यावरण की बात सुनें
ख़त्म हुई चुनाव की गहमा गहमी
अब चलो, पर्यावरण की बात सुनें
सूखते जलाशयों पर नज़र डालें
कहीं झुलसती धरती की बात सुनें
कहीं घने बादलों का करें स्वागत
उफनती नदियों का दर्द भी जानें
पेड़ लगायें, जितने गिरे या कटे
जल बचायें, भू में जज्ब होने दें
गर्म हवाओं में इजाफ़ा मत करें
ग्रीनहाउस गैसों को ना बढ़ायें
बरगद लगायें बंजर ज़मीनों पर
न हो, गमलों में चंद फूल खिलायें
पिघल रहे ग्लेशियर बड़ी तेज़ी से
पर्वतों पर न अधिक वाहन चलायें
सँवारे कुदरत को, न कि दोहन करें
मानुष होने का कर्त्तव्य निभायें
पेड़-पौधों से ही जी रहे प्राणी
है यह धरा जीवित, उसे बसने दें
जियें स्वयं भी जीने दें औरों को
नहीं कभी कुदरती आश्रय ढहायें
साथ रहना है हर हाल में सबको
बात समझें, यह औरों को बतायें !
सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसचेत करती सारगर्भित कविता. बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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