गागर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गागर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, जुलाई 8

धरती और आकाश गा रहे

धरती और आकाश गा रहे

अब हमने खाली कर डाला
अपने दिल की गागर को,
अब तुझको ही लाना होगा
इसमें दरिया, सागर को !

अब न कोई सफर शेष है
कदमों को विश्राम मिला,
अब तुझको ही पहुंचाना है
शबरी को जहाँ राम मिला !

अब न जोड़ें अक्षरमाला
कविता, गीत, कहानी में,
झरना होगा स्वयं ही तुझको
इन लफ्जों की रवानी में !

अब क्या चाहें मांग के तुझको  
पूर्ण हुआ सारे अरमान,
धरती और आकाश गा रहे
संग हंसे दिन रात जहान !

तितली, पादप बने हैं भेदी
हरी दूब देती संदेश,
अब तू कहाँ छिपा है हमसे
सुनें जरा अगला आदेश !

अब तो जीना मरना सम है
कैसी घड़ी अनोखी है,
इक चट्टान चैन की जैसे
क्या ये तेरे जैसी है !   

गुरुवार, अगस्त 30

चंदा ज्यों गागर से ढलका



चंदा ज्यों गागर से ढलका

खाली है मन बिल्कुल खाली
एक हाथ से बजती ताली,
चेहरा जन्म पूर्व का जैसे
झलक मृत्यु बाद की जैसे !

ठहरा है मन बिल्कुल ठहरा
मीलों तक ज्यों फैला सेहरा,
हवा भी डरती हो बहने से
श्वासों पर लगा है पहरा !

हल्का है मन बिल्कुल हल्का
नीलगगन ज्यों उसमें झलका,
जो दिखता है किन्तु नहीं है
चंदा ज्यों गागर से ढलका !

है अबूझ सब जान रहा है
कहना मुश्किल, मान रहा है,
पार हुआ जो जिजीविषा से
खेल मृत्यु से ठान रहा है !