धरती और आकाश गा रहे
अब हमने खाली कर डाला
अपने दिल की गागर को,
अब तुझको ही लाना होगा
इसमें दरिया, सागर को !
अब न कोई सफर शेष है
कदमों को विश्राम मिला,
अब तुझको ही पहुंचाना है
शबरी को जहाँ राम मिला !
अब न जोड़ें अक्षरमाला
कविता, गीत, कहानी में,
झरना होगा स्वयं ही तुझको
इन लफ्जों की रवानी में !
अब क्या चाहें मांग के
तुझको
पूर्ण हुआ सारे अरमान,
धरती और आकाश गा रहे
संग हंसे दिन रात जहान !
तितली, पादप बने हैं भेदी
हरी दूब देती संदेश,
अब तू कहाँ छिपा है हमसे
सुनें जरा अगला आदेश !
अब तो जीना मरना सम है
कैसी घड़ी अनोखी है,
इक चट्टान चैन की जैसे
क्या ये तेरे जैसी है !