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मंगलवार, अप्रैल 6

कोरोना काल

कोरोना काल 

यह भय का दौर है 

आदमी डर रहा है आदमी से 

गले मिलना तो दूर की बात है 

डर लगता है अब तो हाथ मिलाने से 

 घर जाना तो छूट ही गया था

 पहले भी अ..तिथि बन  

अब तो बाहर मिलने से भी कतराता है 

एक वायरस ने बदल दिए हैं सारे समीकरण 

दूरी बनी रहे किसी तरह 

इसका ही बढ़ रहा है चलन 

डरा हुआ आदमी हर बात मान लेता है 

बिना बुखार के भी गोली फांक लेता है 

सौ बार धोता है हाथ 

नकाब पहन लेता है 

वरना एक को हुआ जुकाम तो 

सारा घर कैदी हो जाता है 

घर में अजनबी बन जाते हैं लोग अब 

दूसरे कमरे में बैठी 

माँ मानो चली गई हो दूसरे गाँव 

इस डर ने छीन ली है आजादी 

छीन ली है खुले बरगद की छाँव 

 दौर ही ऐसा है 

यह डरने और डराने का

यहाँ बस काम से काम रखना 

किसी की ओर नजर भी नहीं उठाने का !