मंगलवार, अप्रैल 6

कोरोना काल

कोरोना काल 

यह भय का दौर है 

आदमी डर रहा है आदमी से 

गले मिलना तो दूर की बात है 

डर लगता है अब तो हाथ मिलाने से 

 घर जाना तो छूट ही गया था

 पहले भी अ..तिथि बन  

अब तो बाहर मिलने से भी कतराता है 

एक वायरस ने बदल दिए हैं सारे समीकरण 

दूरी बनी रहे किसी तरह 

इसका ही बढ़ रहा है चलन 

डरा हुआ आदमी हर बात मान लेता है 

बिना बुखार के भी गोली फांक लेता है 

सौ बार धोता है हाथ 

नकाब पहन लेता है 

वरना एक को हुआ जुकाम तो 

सारा घर कैदी हो जाता है 

घर में अजनबी बन जाते हैं लोग अब 

दूसरे कमरे में बैठी 

माँ मानो चली गई हो दूसरे गाँव 

इस डर ने छीन ली है आजादी 

छीन ली है खुले बरगद की छाँव 

 दौर ही ऐसा है 

यह डरने और डराने का

यहाँ बस काम से काम रखना 

किसी की ओर नजर भी नहीं उठाने का ! 


 

14 टिप्‍पणियां:

  1. अभी तो फिर से बढ़ रहा कोरोना । वाकई डरने के दिन है ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 06 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-04-2021) को  "आओ कोरोना का टीका लगवाएँ"    (चर्चा अंक-4029)  पर भी होगी। 
    --   
    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। परन्तु प्रसन्नता की बात यह है कि ब्लॉग अब भी लिखे जा रहे हैं और नये ब्लॉगों का सृजन भी हो रहा है।आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --  

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  4. बहुत सुंदर, वक्त है सब कुछ बदल दे रहा, आदमी और आदमियत को भी , आओ सम्हाले जितना अपने हाथ

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    1. सही है, हर कोई अपना योगदान दे, घर पर रहे इसे फैलने न दे, आभार !

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  5. कल्पनातीत है आज का भयाभय समय और आत्म संयम ही रामबाण है । त्राहिमाम! त्राहिमाम! त्राहिमाम!

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    1. सही कह रही हैं आप अमृता जी, आत्मसंयम ही हमें सुरक्षित रख सकता है

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  6. baat to sahi kaha, waqai darne ke din hain, sayam se hi suraksha ho sakti hai sabki
    Abhar

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  7. कितना अच्छा हो इन्सान संयम का पाठ अपने जीवन में उतारे!
    उसकी अतिशय लालसाओं ने ही यहाँ लाकर खड़ा कर दिया है .

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