चिड़िया और आदमी
चिड़िया भोर में जगती है
उड़ती है, दाना खोजती है
दिन भर फुदकती है
शाम हुए नीड़ में आकर सो जाती है
दूसरे दिन फिर वही क्रम
नीले आसमान का उसे भान नहीं
हरे पेड़ों का उसे भान नहीं
हवाओं,सूरज, धूप का उसे भान नहीं
परमात्मा का उसे भान नहीं
पर वह मस्त है अपने में ही मग्न
और उधर आदमी
उठता है चिंता करता है
चिंता में काम करता है
चिंता में भोजन खाता है
चिंता में ही सो जाता है
उसे भी नीला आकाश दिखायी नहीं देता
हज़ार नेमतें दिखाई नहीं देतीं
परिजन व आसपास के लोग दिखाई नहीं देते
बस स्वार्थ सिद्धि में लगा रहता है
तब आदमी चिड़िया से भी छोटा लगता है