धुन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
धुन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, जुलाई 28

जाग कर देखें जरा

जाग कर देखें जरा 


कैद पाखी क्यों रहे 

जब आसमां उड़ने को है,

सर्द आहें क्यों भरे 

नव गीत जब रचने को है !


सामने बहती नदी 

भला ताल बन कर क्यों पलें,

छांव शीतल जब मिली 

घनी धूप बन कर क्यों जलें !


क्षुद्र की क्यों मांग जब

महा उच्च सम्मुख हो खड़ा,

क्यों न बन दरिया बहे 

भरा प्रेम भीतर है बड़ा !


तौलने को पर मिले 

प्रतिद्वंद्विता उर क्यों भरें,

आस्था की राह पर 

शुभ मंजिलें नई तय करें !


 धुन सदा इक गूंजती  

वहाँ शोर से क्यों जग भरें,

छू रहा हर पल हमें 

पीड़ा विरहन की क्यों सहें !


जाग कर देखें जरा 

हर ओर उसकी सुलभ छटा,

प्राण बन कर साथ जो 

 भिगो मन गया बन कर घटा !


 रूप के पीछे छिपा 

सदा प्राप्य अपना हो वही,

 नाम में सबके बसा   

वही नाम जिसका है नहीं !


शुक्रवार, सितंबर 8

एक अजब सा खेल चल रहा


एक अजब सा खेल चल रहा


इक ही धुन बजती धड़कन में
इक ही राग बसा कण-कण में,
एक ही मंजिलरस्ता एक
इक ही प्यास शेष जीवन में !

मधुरम धुन वह निज हस्ती की
एक रागिनी है मस्ती की,
एक पुकार सुनाई देती
दूर पर्वतों की बस्ती की !

मस्त हुआ जाये ज्यों नदिया
पंछी जैसे उड़ते गाते,
डोलें मेघा संग हवा के
बेसुध छौने दौड़ लगाते !

खुला हृदय ज्यों नीलगगन है
उड़ती जैसे मुक्त पवन है,
दीवारों में कैद न हो मन
अंतर पिय की लगी लगन है !

एक अजब सा खेल चल रहा
लुकाछिपी है खुद की खुद से,
मन ही कहता मुझे तलाशो
मन ही करता दूर स्वयं  से !

सोमवार, फ़रवरी 3

झर जाये हर चाह तो

झर जाये हर चाह तो


थम कर ठिठक जाता है
खाली हुआ मन !
रीझ-रीझ जाता है खुद पर ही
तकने लगता है निर्निमेष अंतहीन
निज साम्राज्य को....
मौन एक पसरा है
राग बज रहा हो फिर भी कोई जैसे
सन्नाटा गहन चहूँ ओर
धुन गूंज रही हो कोई जैसे
नजर न आता दूर तक
पर साथ चल रहा हो कोई
पर होता है हर कदम अहसास
दृष्टि हटते ही बाहर से
भीतर अनंत नजर आता है
नहीं दीवारें न कोई रास्ता
अंतहीन एक अस्तित्त्व
ढक लेता है रग-रग को
भर देता है तृप्ति भीतर
झरना ऐसा झरता है
हर लेता जो तृषा जन्मों की
जहाँ किया नहीं जाता कुछ भी
सब कुछ अपने आप घटता है
गूंजता है मानो कोई दिव्य आलाप
झर जाती है हर चाह
मन से जिस क्षण..

गुरुवार, जनवरी 31

अबूझ है हर शै यहाँ



 अबूझ है हर शै यहाँ

नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता
हुआ जा सकता है
खोया जा सकता है
डूबा जा सकता है
नहीं, कुछ नहीं कहा जा सकता
फूल के सौंदर्य के बारे में
पीया जा सकता है
मौन रहकर
नहीं खोले जा सकते जीवन के रहस्य
जीवन जिया जा सकता है
नृत्य कहाँ से आता है
कौन जानता है ?
थिरका जा सकता है
यूँ ही किसी धुन, ताल पर
कहाँ से आती है मस्ती
कबीर की
वहाँ ले जाया नहीं
खुद जाया जा सकता है
डोला जा सकता है
उस नाद पर
जो सुनाया नहीं जा सकता
सुना जा सकता है
प्रकाश की नदी में डूबते उतराते भी
बाहर अँधेरा रखा जा सकता है
नहीं ही जो कहा जा सकता
उसके लिए शब्दों को
विश्राम दिया जा सकता है !

मंगलवार, जुलाई 17

ये इशारे हैं उसी के



ये इशारे हैं उसी के

वह जो धुन गहरे तक उतर जाती है
कूक कोकिल की रह-रह के सताती है
ये जो रातों को झांकते हैं तारे
चाँदनी झरोखे से बिछौने पे बिछ जाती है
और... झीलों में जो खिलते हैं कमल
तिरें फूलों से भरी कश्तियाँ सुंदर
ये इशारे हैं उसी के याद रखना यह सदा
संदेस भेजे हैं उसी ने.. हमारे ही लिये....


झांकता सूर्यमुखी जब जानिब सूरज की
ताकता मोर बादलों की तरफ जब भी
पुकार उठती अकेली नाव से माझी की
निहारती कोई बाला जाने राह किसकी
यह जो तलाश जारी है दिलों में प्रेम की
ये चाहत है उसी की याद रखना यह सदा
ये जाल बिछाए हैं उसी ने.. हमारे ही लिये..  


यह जो पुरवाई चली आयी नमी ले मीलों से
उड़ी जातीं पंक्तियाँ हंसों की अम्बर पे
ये जो बिखरा है तब्बसुम चेहरों पे तितलियों के
किलक गूंजती है नन्हों की बसेरों में
ये सौगाते हैं उसी की याद रखना यह सदा
ये बातें हैं उसी की.. हमारे ही लिये..

सोमवार, जून 18

एक रागिनी है मस्ती की


एक रागिनी है मस्ती की

एक ही धुन बजती धड़कन में
एक ही राग बसा कण-कण में,
एक ही मंजिल, एक ही रस्ता
एक ही प्यास शेष जीवन में !

एक ही धुन वह निज हस्ती की
एक रागिनी है मस्ती की,
एक पुकार सुनाई देती
दूर पर्वतों की बस्ती की !

मस्त हुआ जाये ज्यों नदिया
पंछी जैसे उड़ते गाते,
उड़ते मेघा सँग हवा के
बेसुध छौने दौड़ लगाते !

खुले हों जैसे नीलगगन है
उड़ती जैसे मुक्त पवन है,
क्यों दीवारों में कैद रहे मन
परम प्रीत की लगी लगन है !

एक अजब सा खेल चल रहा
लुकाछिपी है खुद की खुद से,
स्वयं ही कहता ढूंढो मुझको
स्वयं ही बंध कर दूर है खुद से !