खो गया है आदमी
भीड़ ही आती नजर
खो गया है आदमी,
इस जहाँ की इक फ़िकर
हो गया है आदमी !
दूर जा बैठा है खुद
फ़ासलों की हद हुई,
हो नहीं अब लौटना
जो गया है आदमी !
बेखबर ही चल रहा
पास की पूंजी गंवा,
राह भी तो गुम हुई
धो गया है आदमी !
बांटने की कला भूल
संचय की सीख ली,
बंद अपने ही कफन में
सो गया है आदमी !
श्रम बिना सब चाहता
नींद सोये चैन की,
मित्र बन शत्रु स्वयं का
हो गया है आदमी !
प्रार्थना भी कर रहा
व्रत, नियम, उपवास भी,
वश में करने बस खुदा
लो गया है आदमी !