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बुधवार, मई 28

चुनाव हमारा है




चुनाव हमारा है

कल हम हो जायेंगे विदा 
और परसों 
लोग हमें भूल जायेंगे  
इस तरह 
जैसे कि कभी था ही नहीं 
अस्तित्त्व हमारा
इस दुनिया में 
हमारे हाथ में है ‘आज’ 
चाहे तो गीत गुनगुना लें
या उस अहंकार को सजा लें
जो है ही नहीं।।
उसके कारण अपने पावों में
काँटों को चुभा लें 
या दी है जिसने जिन्दगी की नेमत 
उस रब को रिझा लें !

सोमवार, मई 26

चुनाव

चुनाव 


 गा रहे पंछी 

 बह रही हवा 

घूम रही धरा  

 हो रहा अपने आप सब कुछ !


चल रही श्वास  

 बढ़ रही उम्र  

 दौड़ रहा मन  

 हो रहा अपने आप सब कुछ !


 साक्षी

भूताकाश व चित्ताकाश का 

जिस पर  

टिकी है सारी सृष्टि 


अकर्ता 

वह अनुमंता 

हर चुनाव 

जिसके हाथ में  !


सोमवार, जून 10

सभी दलों से देश बड़ा है

सभी दलों से देश बड़ा है 


लोकतंत्र की विजय हुई है 

हारे-जीततें होंगे लोग, 

देश समन्वय के रस्ते  पर 

आश्वासित हुए सारे लोग !


तय कर दिया चुनावों ने यह 

राजनीति से बड़े हैं राम,  

मिल-जुल कर ही बढ़ना आगे 

संविधान का यही  पैग़ाम !


सभी दलों से देश बड़ा है 

सेवा का जो अवसर देता, 

सरकारें आये जायेंगी 

युगों-युगों से भारत माता !


बुधवार, जून 5

अब चलो, पर्यावरण की बात सुनें

अब चलो, पर्यावरण  की बात सुनें 


ख़त्म हुई चुनाव की गहमा गहमी 

अब चलो, पर्यावरण  की बात सुनें 


सूखते जलाशयों पर नज़र डालें 

कहीं झुलसती धरती की बात सुनें 


कहीं घने बादलों का करें स्वागत

उफनती नदियों का दर्द भी जानें  


पेड़ लगायें, जितने गिरे या कटे   

जल बचायें, भू में जज्ब होने दें  


गर्म हवाओं में इजाफ़ा मत करें  

ग्रीनहाउस गैसों को ना बढ़ायें 


बरगद लगायें बंजर ज़मीनों पर 

न हो, गमलों में चंद फूल खिलायें 


पिघल रहे ग्लेशियर बड़ी तेज़ी से 

पर्वतों पर न अधिक  वाहन चलायें 


सँवारे कुदरत को, न कि दोहन करें 

मानुष   होने का कर्त्तव्य निभायें 


पेड़-पौधों से ही जी रहे प्राणी 

है यह धरा  जीवित, उसे बसने दें 


जियें स्वयं भी जीने दें औरों को

नहीं कभी कुदरती आश्रय ढहायें 


साथ रहना है हर हाल में सबको 

बात समझें, यह  औरों को बतायें ! 


शनिवार, जून 1

कितना झूठ हक़ीक़त कितनी

विजय माल कौन पहनेगा 


अबकी बार चार सौ पार 

चला यह नारा बारम्बार, 

लोकतंत्र के भवसागर से 

यही करेगा बेड़ा पार !


दुनिया देख रही भौंचक्की 

बना चुनाव एक त्योहार, 

नेताओं का बड़बोलापन 

शब्दों की दुधारी तलवार !


कितना झूठ हक़ीक़त कितनी 

चाहे परखना हर पत्रकार, 

किंतु अजब पहेली इसकी 

कोई न पाये पारावार !


दिवस-रात्रि एक कर डाले 

सोना-जगना भी दुश्वार,

अब जाकर आराम मिला है 

जब से पकड़ी थी रफ़्तार !


छुपा हुआ है इवीएम में 

राज बना चुनाव का रार, 

विजय माल कौन पहनेगा 

किसको मिली करारी हार !


शुक्रवार, अगस्त 11

विभूति

विभूति 


सुना है तेरी मर्ज़ी के बिना 

पत्ता भी नहीं हिलता 

कोई चुनाव भी करता है 

तो तेरे ही नियमों के भीतर 

चाँद-तारे तेरे बनाये रास्तों पर 

भ्रमण करते 

नदियाँ जो मार्ग बदल लेतीं, कभी-कभी 

उसमें भी तेरी रजा है 

सुदूर पर्वतों पर फूलों की घाटियाँ उगें 

इसका निर्णय भला और कौन लेता है 

हिमशिखरों से ढके उत्तंग पर जो चमक है 

वह तेरी ही प्रभा है 

कोकिल का पंचम सुर या 

मोर के पंखों की कलाकृति 

सागरों की गहराई में जगमग करते मीन 

और जलीय जीव 

मानवों में प्रतिभा के नये-नये प्रतिमान 

तेरे सिवा कौन भर सकता है 

अनंत हैं तेरी विभूतियाँ 

हम बनें उनमें सहायक 

या फिर तेरी शक्तियों के वाहक 

ऐसी ही प्रार्थना है 

इस सुंदरता को जगायें स्वयं के भीतर 

यही कामना है ! 


गुरुवार, अप्रैल 6

अमिलन


अमिलन

लाख मिलाएँ

 शक्कर और रेत 

जैसे नहीं मिलते 

आत्मा और देह वैसे ही हैं 

अंतत: शक्कर भी 

परमाणुओं से बनी है 

रेत की तरह 

देह भी बनी है 

उसी तत्व से जिससे 

आत्मा गढ़ी है 

स्वयं भू ! चिन्मय !

और कोई चुनाव कर सकता है 

सदा ही 

जो स्थूल है 

जिसे देखा, सुना, सूंघा जा सकता है 

दूजी वायवीय जिसमें डूबकर 

वही हुआ जा सकता है 

एक में खुद पर चार चाँद

लगाए जा सकते हैं 

एक में खुद को मिटाया जाता है 

लगाओ लाख तमग़े 

मृत्यु का एक झटका 

सब छीन लेता है 

मिटकर जो मिलता है 

वह रहता है मृत्यु के पार भी 

इसीलिए वेद गाते हैं 

तुम हो वही !