ऋतु आयी मृदु भावों वाली
धूप, हवा संग एक हो सकें
नदिया, पिकनिक, फूलों वाली
ऋतु आयी मृदु भावों वाली !
हल्की-हल्की ठंड रेशमी
नहीं ताप अब रवि बरसाता,
बादल लौट गये निज धाम
नीला चंदोवा हर्षाता !
धरा तृप्त है वारिद पीकर
कलियों, तितली, भंवरों वाली
ऋतु आयी मृदु भावों वाली !
मदिर गंध ले बही समीरा
सुरभि बिखरने को है आतुर,
जीवन अपना राज खोलता
चले भूमि में सोने दादुर !
थिर गम्भीर हुई जलवायु
कण कण को हर्षाने वाली
ऋतु आयी मृदु भावों वाली !