वह
खुदा बनकर वह सदा साथ निभाता है
मेरा हमदम हर एक काम बनाता है
जिंदगी फूल सी महका करे दिन-रात
कितनी तरकीब से सामान जुटाता है
न कमी रहे न कोई कामना अधूरी
बिन कहे राह से हर विरोध हटाता है
किस तरह करें शुक्रिया ! कैसे जताएं ?
कुछ किया ही नहीं काम यूँ कर जाता है
दिल मान लेता जिस पल आभार उसका
वह निज भार कहीं और रख के आता है
कौन है सिवाय उसके या रब ! ये बता
वही भीतर वही बाहर नजर आता है
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत बेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंजिंदगी फूल सी महका करे दिन-रात
जवाब देंहटाएंकितनी तरकीब से सामान जुटाता है ।
कितनी प्यारी ग़ज़ल । हमदम है, सब कुछ करता है । भावों का समर्पण ।
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर गजल।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर गजल
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंकौन है सिवाय उसके या रब ! ये बता
जवाब देंहटाएंवही भीतर वही बाहर नजर आता है
बहुत सुंदर,सादर नमन अनीता जी
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता। जीवनसाथी में ईश्वर नज़र आएँ या ईश्वर जीवन के हर सुख-दुःख में साथ। दोनों अनुभूतियाँ सुंदर हैं और इस कविता में दोनों अनुभूतियाँ नज़र आ रहीं हैं। हृदय से आभार इस सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए।
कविता के मर्म तक पहुँच कर सुंदर प्रतिक्रिया हेतु आभार अनंता जी!
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंक्या कहने अनीता जी ! बहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल...अनीता जी
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