वही थाम लेता राहों में
कोई लिखवा जाता है ज्यों
जहाँ कलम, कागज सम्मुख है,
अक्षर भरते से जाते हैं
मौन सदा, जो जगत प्रमुख है !
वही शब्द है वही अर्थ भी
वही गीत प्राणों में भरता,
वही श्वास बन आता जाता
वही स्वयं से जोड़े रखता !
जिसके होने से ही हम हैं
एक पुलक बन तन में दौड़े,
वही थाम लेता राहों में
व्यर्थ कहीं जब मन यह दौड़े !
होकर भी ना होना जाने
उसके ही हैं हम दीवाने,
जिसे भुला के जग रोता है
याद करें हम लिखें तराने !
जो भी उसकी याद दिलाये
वही गुरू सम पूजा जाये,
सपनों की अब कौन सुने? जब
नींदों को ही हर ले जाये !
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मनोहर
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