गुरुवार, अक्टूबर 30

वही थाम लेता राहों में

वही थाम लेता राहों में 


कोई लिखवा जाता है ज्यों 

जहाँ कलम, कागज सम्मुख है, 

अक्षर भरते से जाते हैं 

मौन सदा, जो जगत प्रमुख है !


वही शब्द है वही अर्थ भी 

वही गीत प्राणों में भरता, 

वही श्वास बन आता जाता 

वही स्वयं से जोड़े रखता !


जिसके होने से ही हम हैं 

एक पुलक बन तन में दौड़े, 

वही थाम लेता राहों में 

व्यर्थ कहीं जब मन यह दौड़े ! 


 होकर भी ना होना जाने 

उसके ही हैं हम दीवाने, 

 जिसे भुला के जग रोता है 

याद करें हम लिखें तराने !


जो भी उसकी याद दिलाये 

वही गुरू सम पूजा जाये, 

सपनों की अब कौन सुने? जब 

नींदों को ही हर ले जाये !


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