ईसा ने था यही कहा
राज्य स्वर्ग का दिल के भीतर
लिये हुए, मानव ! तुम फिरते
पर जाने क्यों, हो बेखबर
अहर्निश नरकों को गढ़ते !
धन्य हैं वे जो नम्र, दीन हैं
दुख को दुःख रूप में जानें,
इक दिन होंगे सुख स्वर्ग में
बालक वत् जो होना जानें !
जाल फेंक मछली ही पकडें
थे ईसा न ऐसे मछुआरे,
ऐसा प्रेमिल जाल डालते
खिंच आये मानव, दिल वारे !
तन, मन और आत्मा के भी
घेर रहे जो रोग युगों से,
सबको मुक्त कराया उनसे
गाँव- गाँव घूमें बंजारे !
तुम धरती के नमक अमूल्य
तुम ज्योति इस जगत की सुंदर,
ऐसे विचरो झलके तुमसे
महिमा शाली वह परमेश्वर !
पूजा पाठ बाद में करना
रखना मन को जल सा निर्मल,
शत्रु से भी द्वेष न करना
अंतर्मन भी फूल सा कोमल !
प्रेम के बदले प्रेम दिया तो
ना कोई सौदा बड़ा किया,
सूली पर चढ़ते चढ़ते भी
ईसा ने तो यही कहा था !
अनिता निहालानी
२४ दिसंबर २०१०
बहुत प्रेरक और भावपूर्ण प्रस्तुति..क्रिसमस के अवसर पर हार्दिक शुभ कामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और प्रेरणादायक रचना ...
जवाब देंहटाएंक्रिसमस की शुभकामनायें