सोमवार, दिसंबर 20

सृष्टि नई नवेली दिखती

सृष्टि नई नवेली दिखती

कौन छिपा पर्दे के पीछे
जाने किसको खोज रहे हैं ?
आते जाते लोग युगों से
जाने क्या कुछ खोज रहे हैं ?

किस रहस्य ने बींधा इनको
क्या तलाशती हैं संस्कृतियाँ,
नृत्य, वाद्य, शिल्प के पीछे
छिपी कौन सी आकृतियां !

दूरबीन ले तकते नभ को
नक्षत्रों की कुंडली बांचें,
सागर तल की गहराई में
जीव-जगत के चित्र भी आंकें !

कितने प्रश्न अबूझे अब भी
ज्ञानी-ध्यानी कितने आये,
सृष्टि नई नवेली दिखती
युग पर युग बीतता जाये !

जग के हाथ न कुछ भी आया
जिसने खोजा उसने गाया,
गाकर वह फिर मौन रह गया
सब दे भी कुछ दे ना पाया !

अनिता निहालानी
२० दिसंबर २०१०

3 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sundar bhavabhivayakti .mere blog ''vikhyat'' par aapka hardik swagat hai .

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  2. जग के हाथ न कुछ भी आया
    जिसने खोजा उसने पाया,
    पाकर वह फिर मौन रह गया
    सब देकर भी कुछ दे न पाया !---खोजने से मिल जायेगा,पर हिम्मत चाहिए खोजने की,क्योंकि उसके लिये जो मिला हुआ है उसे छोड़ना पड़ेगा.यह बात अलग है कि जो उसे पा लेता है उसे और कुछ की जरूरत ही नहीं रहती.

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  3. बहुत ही सुंदर इतना तो स्पष्ट है कि सत्य और मन के सौहार्द भाव ईश्वर से जुड़ने के परम माध्यम है और यह कविता वही माध्यम है एक स्नेहिल भावधारा को लिए चिरंतन ... इस पथ पर मैं बरसों चलती रहूँ इससे बढ़कर आनंद का सोता कहाँ होगा प्रयासों में एक सुंदर दुनिया बसती है ।

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