वही तो है
विस्तृत नभ की शुभ्र नीलिमा
पर्वत, जंगल की हरीतिमा
महा अंतरिक्ष की अनंतता
कण-कण में छाई जीवन्तता
छुपा सभी में वही तो है !
सिंधु लहरियों के गर्जन में
शांत सरों के जल दर्पण में
फेन, झाग, बूंद में समाया
लहर-लहर में उसकी छाया
बसा सभी में वही तो है !
हो संध्या की श्यामलता, या
मधुर चाँदनी की कोमलता
अर्धरात्रि की नीरवता में
नव किरण की सलज्जता में
रमा सभी में वही तो है !
अनिता निहालानी
१५ फरवरी २०११
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
जवाब देंहटाएंरमा सभी में वही तो है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
शब्दों के सुंदर चयन से सजी कविता बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंमधुरिम
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंवाह.....वाह.....सच है इस सम्प्पोर्ण अस्तित्व में सिर्फ वही है.....
तू ही तू रहे,बाकि न मैं न मेरी आरज़ू रहे......
बहुत अच्छी रचना अनीता जी .
जवाब देंहटाएं'मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से '