बस चंद पल और यहाँ
बस चंद पल और यहाँ
फिर डेरा डंडा
समेटना होगा
फूल जो उगा है मस्ती में
शाम होते ही उसे
झर जाना होगा
कीमती हैं ये चंद पल
भीतर जो भी
लुटाएं जी भर
सुमन बिखेर देता
सुरभि ज्यों
दिलों में बस जाएँ जाकर..
न जाने किस देश में
फिर जाना होगा
लोग बेगाने
रास्ता अनजाना होगा
जब तक तेल दीपक में है
रौशनी लुटानी है
जब वक्त आयेगा चुपचाप
बत्ती बढ़ानी है
बन पड़े जितना
चेहरा इस जग एक और
साफ हो जाये
एक एक बीज से ही
नया उपवन खिल जाये..
एक एक बीज से ही
जवाब देंहटाएंनया उपवन खिल जाये.. वाह: बहुत ही भावमयी रचना..
न जाने किस देश में
जवाब देंहटाएंफिर जाना होगा
लोग बेगाने
रास्ता अनजाना होगा
जब तक तेल दीपक में है
रौशनी लुटानी है
बहुत ही सुन्दर लगी ये कविता।
इमरान, शुक्रिया !
हटाएंnice presentation.samjhen ham
जवाब देंहटाएंकब जाने दुनियां ममता को ?
जवाब देंहटाएंपहचाने दिल की क्षमता को
हम दिल को कहाँ लगा बैठे ?
कब रोये,निज अक्षमता पर ?
तुम मेरी कमजोरी का भी, जो चाहे अर्थ लगा लेना !
हम जल्द यहाँ से जायेंगे,बस यही कहानी जीवन की !
वाह ! कितनी सुंदर पंक्तियां हैं आपकी...आभार !
हटाएंमाहेश्वरी जी व शालिनी जी आप दोनों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (21-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुंदर रचना :
जवाब देंहटाएंबायोटेक्नोलोजी वालों को समझाना होगा
एक बीज ऎसा ही बनवाना होगा
न जाने किस देश में
जवाब देंहटाएंफिर जाना होगा
लोग बेगाने
रास्ता अनजाना होगा
जब तक तेल दीपक में है
रौशनी लुटानी है
वाह बहुत खूब .....
सुंदर पंक्तियाँ !!
बस कोशिश रहनी चाहिए सदा रौशनी बिखेरने की, कही भी रहें ...
सादर !!
सार्थक अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंचेहरा इस जग एक और
जवाब देंहटाएंसाफ हो जाये
एक एक बीज से ही
नया उपवन खिल जाये..
सब समझ जाएं तो क्या बात है !!