शनिवार, जुलाई 21

कैसे कोई बच सकता है


कैसे कोई बच सकता है


पलकों पे थमे झट से न गिरे
वे दो कतरे आँसू के झरे
मन भीग गया..
प्राची में जब फूल उगे
हिम शिखरों पर चांदी बिखरे
पिघले सोना सागर में जब
अवाक् हुआ मन भीग गया..

पर्वत पर छाया है किसकी
यह तुमुलनाद नभ में किसका
उन आँखों में यह कौन दिखा
मुस्कानों में झलकें किसकी
छोटा-छोटा खंड-खंड सा
वह तो मिलता ही रहता है
सोच यही मन भीग गया..

दर्पण में है सूरत किसकी
झील में ज्यों चाँद गगन का
छोटे छोटे अनुभव उसके
पर सारा का सारा वह है
बस देख यही मन भीग गया..

कैसे कोई बच सकता है
वही-वही तो चारों ओर
टुकड़ा-टुकड़ा खुद को देता
टुकड़ों में वह ही पाता है
वरना वह तो सदा बुलाए
जान यही मन भीग गया.. 

14 टिप्‍पणियां:

  1. हर जगह हर कण में बस वो ही वो है.....शानदार पोस्ट।

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  2. दर्पण में है सूरत किसकी
    झील में ज्यों चाँद गगन का
    छोटे छोटे अनुभव उसके
    पर सारा का सारा वह है
    बस देख यही मन भीग गया....बहुत ही खुबसूरत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  3. हर जगह बस वही वही है ...बहुत सुंदर रचना ... मन भीग भीग गया

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  4. दर्पण में है सूरत किसकी
    झील में ज्यों चाँद गगन का
    छोटे छोटे अनुभव उसके
    पर सारा का सारा वह है
    बस देख यही मन भीग गया..

    प्रकृति का जो चित्रण आपके गीतों और कविताओं में मिलता है वह अनूठा होता है और और सोने पे सुहागा उसमें मानवीय संवेदनाएँ. बहुत सुंदर.

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    1. रचना जी, प्रकृति इतनी सुंदर है खासतौर पर असम में तो प्रकृति की सुंदरता चारों ओर बिखरी है..आभार!

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  5. इस प्रकृति में, प्रकृति के कण कण में वो विराजमान है ...
    उसकी तरह यह रचना भी काफी सुंदर ...

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  6. नही बच सकी,ऐसी भावपूर्ण कविता पढ़ते ही मन भीग गया.

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  7. सचमुच सब देखकर मन भीग जाता है ..

    सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  8. इमरान, माहेश्वरी जी, उपासना जी, दीदी, संगीता जी, शिवनाथ जी, संगीता पुरी जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  9. वही-वही है चारों ओर, सारा का सारा वह है... बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  10. आत्मा से निकली हुई अभिव्यक्ति .........
    बहुत सुन्दर........

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  11. संध्या जी, ललित मोहन जी, स्वागत व आभार!

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  12. वाह ... बहुत ही भावमय करती प्रस्‍तुति।

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