मंगलवार, जुलाई 17

ये इशारे हैं उसी के



ये इशारे हैं उसी के

वह जो धुन गहरे तक उतर जाती है
कूक कोकिल की रह-रह के सताती है
ये जो रातों को झांकते हैं तारे
चाँदनी झरोखे से बिछौने पे बिछ जाती है
और... झीलों में जो खिलते हैं कमल
तिरें फूलों से भरी कश्तियाँ सुंदर
ये इशारे हैं उसी के याद रखना यह सदा
संदेस भेजे हैं उसी ने.. हमारे ही लिये....


झांकता सूर्यमुखी जब जानिब सूरज की
ताकता मोर बादलों की तरफ जब भी
पुकार उठती अकेली नाव से माझी की
निहारती कोई बाला जाने राह किसकी
यह जो तलाश जारी है दिलों में प्रेम की
ये चाहत है उसी की याद रखना यह सदा
ये जाल बिछाए हैं उसी ने.. हमारे ही लिये..  


यह जो पुरवाई चली आयी नमी ले मीलों से
उड़ी जातीं पंक्तियाँ हंसों की अम्बर पे
ये जो बिखरा है तब्बसुम चेहरों पे तितलियों के
किलक गूंजती है नन्हों की बसेरों में
ये सौगाते हैं उसी की याद रखना यह सदा
ये बातें हैं उसी की.. हमारे ही लिये..

16 टिप्‍पणियां:

  1. यह जो पुरवाई चली आयी नमी ले मीलों से
    उड़ी जातीं पंक्तियाँ हंसों की अम्बर पे
    ये जो बिखरा है तब्बसुम चेहरों पे तितलियों के
    किलक गूंजती है नन्हों की बसेरों में
    लग रहा है की दूर कहीं किसी वन में बैठा हूँ और दूर से पास आता कोहरा मुझे अपने आगोश में ले रहा है.
    भई वाह.................

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    1. पंडित ललित मोहन जी, आप संभवतः पहली बार इस ब्लॉग पर आये हैं....स्वागत व आभार !

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  2. ये सौगाते हैं उसी की याद रखना यह सदा
    ये बातें हैं उसी की.. हमारे ही लिये..
    सच कहा।

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  3. सुभानाल्लाह .....एक समां सा बांध दिया...... हैट्स ऑफ इसके लिए ।

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  4. सार्थक व् सुन्दर प्रस्तुति आभार समझें हम

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  5. मुकेश जी, अनामिका जी, शालिनी जी, संगीता जी, वन्दना जी व माहेश्वरी जी आप सभी का बहुत बहुत स्वागत व आभार!

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  6. बहुत ही सुन्दर सकारात्मक रचना ... दिल को छूती है ...

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  7. ये इशारे उसके हैं या उसके इशारे में मैं हूँ | बहुत खूब |

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  8. दिगम्बर जी, ललित जी, अमित जी व रीना जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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