जिंदगी अनमोल मोती सी जड़ी है
मर गए जो वे सहारा ढूंढते हैं
जिंदगी तो पांव अपने पर खड़ी है
इक पुराना, इक नया कल बाँधता
जिंदगी इस पल में जीने को अड़ी है
क्यों गंवायें रंजिशों में फुरसतें
पास अपने कुल मिला कर दो घड़ी है
एक दिन उसका भी होगा सामना
मौत भी तो जिंदगी की इक कड़ी है
एक लम्हा ही इबादत का सहेजें
पास उसके एक जादू की छड़ी है
मुस्कुराहट का कवच पहना भले हो
इक नुकीली पीर अंतर में गड़ी है
स्वप्न सजते थे सुहाने जिसमें कल
उस नयन में अश्रुओं की इक लड़ी है
दूर तक पसरा है आंचल प्रीत का
जिंदगी अनमोल मोती सी जड़ी है
क्यों गंवाते रंजिशों में वक्त को
जवाब देंहटाएंपास अपने कुल मिला कर दो घड़ी है]
वाह बहुत उम्दा प्रस्तुति
वन्दना जी, स्वागत व शुक्रिया..
हटाएंएक लम्हा ही इबादत का सहेजें
जवाब देंहटाएंपास उसके एक जादू की छड़ी है
क्या कहू अनीता जी ...ओस की बूँद सा आपका काव्य ....पावन ...
एक पल में ही सकारात्मक कर देता है मन ...
अद्भुत रचना ...!!
अनुपमा जी, बहुत बहुत आभार..
हटाएंbhot hi umda waaaah
जवाब देंहटाएंअशोक जी, आभार!
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
कालीपद जी, सुस्वागतम...
हटाएंसुन्दर भाव के साथ आपकी रचना में शब्दों का सुन्दर संयोजन बेहद पसंद आता है |
जवाब देंहटाएंसंध्या जी, आपका स्वागत है, शुक्रिया !
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जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना .भाव लिए अर्थ और संगीत लिए .लय ताल लिए .
नतमस्तक हूँ..
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