ऐसी हो अपनी पूजा
लक्ष्य परम, हो मन समर्पित
हृदयासन पर वही प्रतिष्ठित !
शांतिवेदी, ज्ञानाग्नि प्रज्वलित
भावना लौ, प्रेम पुष्प अर्पित !
पुलक जगे अंतर, उर प्रकम्पित
सहज समाधि, अश्रुधार अंकित !
छंटें कुहासे, करें ज्योति अर्जित
आनंद प्रसाद पा, बीज प्रस्फुटित !
मिले समाधान, लालसा खंडित
सुन-सुन धुन, मन प्राण विस्मित !
अव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
दृष्टा को दृश्य बना, आत्मा शोभित
waaaaaaaaaaaaaaaaah
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ! अशोक जी
हटाएंwaah ..bahut sunder
जवाब देंहटाएंमानव जी, स्वागत है
हटाएंअव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
जवाब देंहटाएंदृष्टा को दृश्य बना, आत्मा शोभित
...बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...आभार
कैलाश जी, स्वागत व आभार!
हटाएंमिले समाधान ,स्थिर मति !
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी, आपने सही कहा,मति स्थिर होने पर ही समाधान मिलता है
हटाएंबहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंमन आनंदित हुआ....
सादर
अनु
अनु जी, सुस्वागतम !
हटाएंअव्यक्त व्यक्त कर, अंतर हर्षित
जवाब देंहटाएंदृष्टा को दृश्य बना, आत्मा शोभित
बढ़िया विचार परक प्रस्तुति -
करो आत्म चिंतन ,करो योग साधन
ये तन होगा निर्मल ,ये मन होगा पावन
ये जीवन हो दुनिया की सेवा में अर्पण ,
तो जाए अपनी ये गैरों की दुनिया .
सुन्दर..अति सुन्दर...ऐसी ही हो अपनी पूजा..
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