स्वतंत्र हैं हम
यही सच है कि
अपने ही हाथों खोदे हैं
अपने मार्ग में हमने गड्ढे
गिर कर उनमें फिर पछताए हैं
हाँ, यही सच है
अपने ही कारण बार-बार
ठगे गये हैं हम जीवन के खेल में
जब हर तरफ ख़ुशी की
बरसात हो रही थी
ओढ़ लिया था हमने ही मायूसी का छाता
जब परमात्मा सूर्य बनकर
चमचमा रहा था गगन में
हम छुप गये थे
गहन, गीली, संकरी कन्दराओं में
रेंगने को मजबूर
जब हवाएं आकाश में डोलती फिरती थीं
हमने माटी के नीचे खोद ली थीं खंदके
और डर कर मौत से छुपते फिर रहे थे
हाँ, यह सच है
हम ही चूक गये हैं बार-बार
उस अनंत की यात्रा पर जाने से
हमने ही स्वर्ण पिंजरों में
चाह था कैद होना
जब पुकार लगाई जा रही थी
प्रातः समीरण के साथ मन्दिर
की घंटियों के संग आती
मधुर झंकार के रूप में
हम किसी गहरी नींद में सोये थे
उसी बेहोशी में शायद हमने ही
बीज बोये थे
अब जब नजर आते हैं
बबूल के जंगल अपने चारों ओर
तो याद आती हैं वह तंद्रालस से भरी सुबहें
यह भी सच है
अपने ही हाथों खड़े कर सकते हैं
हम सुवर्ण महल अपने चारों ओर
जहाँ सुनाई देता है दैवीय संगीत
और छाई है एक अपूर्व शांति की सुगंध
जहाँ से उठती हैं ऋचाएं और शंखनाद
जहाँ से बहती है प्रेम की अजस्र धारा
जहाँ मिलता है हर जीवन को
आश्रय आनंद पूर्ण
जहाँ से उगते हैं दिव्य कमल
जहाँ प्रीत है अतीव सुकोमल
सच दोनों हैं
चुनाव हमें करना है
अपने अन्तस् को हमें भरना है
जो चाहे कर लें
जो चाहे भर ले
स्वतंत्र हैं हम...
मानव मेधा संपन्न प्राणी है ,सृष्टा ने उसे नियंत्रित रहने और और औचित्य का बोध कराने के लिए विवेक दिया और संसार के साधनों का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र कर दिया .
जवाब देंहटाएंआगे चुनाव उसे ही करना है !
सही कहा है प्रतिभा जी, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं