सोमवार, अगस्त 11

याद दिलाता सावन उसकी


याद दिलाता सावन उसकी



नीला नभ जब ढका मेघ से
घोर घटा बन छाया करता,
मधुर स्वरों में दे संदेसे
संग उड़ान पंछी के भरता !

घड़ी-घड़ी वह रब मिलता है
पल-पल हृदय कमल खिलता है,
कभी सिमट आता बूंदों में
बन खग डाल-डाल हिलता है !

बहे चले आता अम्बर से
तिरछी-सीधी जल चादर संग,
नैसर्गिक संगीत बज रहा
 घुंघरू ज्यों बांधे हो छमछम !

अंत न आता दीख रहा है
उस अनंत का कृत्य अनंत,
लाखों धाराएँ बहतीं जब
खो जाते हैं दिग-दिगंत !

हरी घास पर काली मैना
बिछे पुष्प कुछ झरे पवन संग,
याद दिलाता सावन उसकी
श्वेत, पीत फूलों के रंग !


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