याद दिलाता सावन उसकी
नीला नभ जब ढका मेघ से
घोर घटा बन छाया करता,
मधुर स्वरों में दे संदेसे
संग उड़ान पंछी के भरता !
घड़ी-घड़ी वह रब मिलता है
पल-पल हृदय कमल खिलता है,
कभी सिमट आता बूंदों में
बन खग डाल-डाल हिलता है !
बहे चले आता अम्बर से
तिरछी-सीधी जल चादर संग,
नैसर्गिक संगीत बज रहा
घुंघरू ज्यों बांधे हो छमछम !
अंत न आता दीख रहा है
उस अनंत का कृत्य अनंत,
लाखों धाराएँ बहतीं जब
खो जाते हैं दिग-दिगंत !
हरी घास पर काली मैना
बिछे पुष्प कुछ झरे पवन संग,
याद दिलाता सावन उसकी
श्वेत, पीत फूलों के रंग !
bahut sundar.................
जवाब देंहटाएंप्रकृति के हर रूप में उसी का सौंदर्य झलक जाता है
जवाब देंहटाएंरविकर जी, डा. संध्या जी, प्रतिभा जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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