रविवार, अगस्त 31

कोई सागर रहता है

कोई सागर रहता है



नयनों से जो खारा पानी
हर्ष-विषाद में बहता है,
खबर सुनाता, सबके भीतर
कोई सागर रहता है !

सुनना होगा उन लहरों को
अंतर में जो बांच रहीं,
देख आत्मा के चंदा को
देखो कैसे नाच रहीं !

सागर तट पर रहते आये
गहराई में चमचम मोती,
डूब गया मन जिसका उसमें
स्वर्णिम, स्वर्गिक मिलती ज्योति !

शंका और समर्पण जब तक
दो पतवार रहेंगी संग-संग,
डांवाडोल रहेगी नौका
जीवन सागर के जल में !




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