ठहर गया है यायावर मन
पलक झपकते ही तो जैसे
बचपन बीता बीता यौवन,
सांझ चली आई जीवन की
कंप-कंप जाती दिल की धड़कन !
जाने कब यह पलक मुंदेगी
किस द्वारे अब जाना होगा,
मिलन प्रभु से होगा अपना
या फिर लौट के आना होगा !
जो भी हो स्वीकार सभी है
आतुरता से करें प्रतीक्षा,
बोरा-बिस्तर बाँध लिया है
ली विदा दी परम शुभेच्छा !
मन में एक चैन पसरा है
कुछ पाने की आशा टूटी,
ठहर गया है यायावर मन
मंजिल वाली भाषा छूटी !
जीवन जैसा मिला था इक दिन
वैसा सौंप निकल जाना है,
एक स्वप्न था बीत गया जो
कह धीमे से मुस्काना है !
जिसको भी अपना माना था
यहीं मिला था यहीं रहेगा,
मन यह जान हुआ है हल्का
क्या था अपना जो बिछड़ेगा !
लीला ही थी इक नाटक था
जीवन का जो दौर चला है,
रोना-हँसना, गाना, तपना
एक स्वप्न सा आज ढला है !
सुंदरम मनोहरं
जवाब देंहटाएंजिसको भी अपना माना था
जवाब देंहटाएंयहीं मिला था यहीं रहेगा,
मन यह जान हुआ है हल्का
क्या था अपना जो बिछड़ेगा ..
हर इंसान इस बात को मन से जान ले तो दुक्खों का खात्मा हो जाए ...
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअभी यवनिका कहाँ खिंची है ,अभी शेष थोड़ा अभिनय भी ,
जवाब देंहटाएंमीत, अभी दर्शक-दीर्घा में उत्सुकता भी है , विस्मय भी !
प्रतिभाजी, जब भी खिंचेगी यवनिका तब यही गीत गा सकें तैयारी तो करनी होगी...
हटाएंयही जीवन ...
जवाब देंहटाएंवाह ....बहुत ही बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंवीरू भाई, दिगम्बर जी, कविता जी, सदा जी व महेश्वरी जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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