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शनिवार, नवंबर 8

ठहर गया है यायावर मन

ठहर गया है यायावर मन


पलक झपकते ही तो जैसे
बचपन बीता बीता यौवन,
सांझ चली आई जीवन की
कंप-कंप जाती दिल की धड़कन !

जाने कब यह पलक मुंदेगी
किस द्वारे अब जाना होगा,
मिलन प्रभु से होगा अपना
या फिर लौट के आना होगा !

जो भी हो स्वीकार सभी है
आतुरता से करें प्रतीक्षा,
बोरा-बिस्तर बाँध लिया है
ली विदा दी परम शुभेच्छा !

मन में एक चैन पसरा है
कुछ पाने की आशा टूटी,
ठहर गया है यायावर मन
मंजिल वाली भाषा छूटी !

जीवन जैसा मिला था इक दिन
वैसा सौंप निकल जाना है,
एक स्वप्न था बीत गया जो
कह धीमे से मुस्काना है !

जिसको भी अपना माना था
यहीं मिला था यहीं रहेगा,
मन यह जान हुआ है हल्का
 क्या था अपना जो बिछड़ेगा !  

लीला ही थी इक नाटक था
जीवन का जो दौर चला है,
रोना-हँसना, गाना, तपना
एक स्वप्न सा आज ढला है !






शुक्रवार, सितंबर 19

यायावर का गीत

यायावर का गीत


जग चलता है अपनी राह
उसने लीक छोड़ दी है,
है मंजूर अकेले रहना
हर जंजीर तोड़ दी है !

सदियों घुट-घुट जीता आया
माया के बंधन में बंधकर,
अब न दाल गलेगी उसकी
रार ठनेगी उससे जमकर !

कितनी सीमायें बांधी थी 
जब पहचान नहीं थी निज से,
कितने भय पाले थे उर में
जब अंजान रहा था उस से !

कैसे कोई रोके उसको
दरिया जो निकला है घर से,
सागर ही उसकी मंजिल अब
बाँध न कोई भी गति रोके !