कैसा है वह 
एक रेशमी अहसास 
कोई रहस्य बुना हुआ सा 
प्राचीनतम मन्दिर के
खंडहरों सा 
सागर की अतल गहराई में छिपे
असंख्य मोतियों की चमक सा 
अन्तरिक्ष की अनंतता..और
अभेद मौन सा 
शब्दों के पार भाव से परे 
जैसे नीरव एकांत रात्रि में
कमल ताल पर ज्योत्सना झरे 
भोर की पहली किरन सा 
जब गगन में चमकते हों तारे
भी 
पूरब से उगा भी न हो रवि
अभी 
या सूनी दोपहरिया में जब 
भिड़े हों सारे कपाट 
सूनी गली में 
सांय-सांय करती हो अकेली
पवन 
दूर पर्वतों पर बने छोटे से
मन्दिर में 
जब हो चुकी हो दिन की अंतिम
पूजा 
तब उस सन्नाटे सा 
भीतर कोई रहता है..

 
स्वागत व आभार ओंकार जी..
जवाब देंहटाएंनिशब्द...अद्भुत अहसास...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कैलाश जी व सावन जी..
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