तू ही भरे रंग माया के
भाव सभी अर्पित करते हैं
प्रेम और करुणा जो तुझसे,
पल-पल इस जग में झरते हैं
कष्ट हमारा हर हरते हैं !
मधुर तृप्ति का भाव जगा जो
अतृप्ति का भी घाव लगा जो,
चैन और बेचैनी उर की
तेरे चरणों पर रखते हैं !
शांति औ' आनंद की मूरत
देवी ! तू अज्ञान को हरे,
तू ही भरे रंग माया के
हर वर माथे पर धरते हैं !
जगे परम स्वीकार ह्रदय में
विश्रांति मिल जाये चरण में,
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार में
ध्यान सदा तेरा करते हैं !
देवी ! तेरे रूप हज़ारों
कथा अनेकों, नाम हज़ारों,
किस-किस को जाने यह लघु मन
तुझमें ही जीते मरते हैं !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार, 5 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी!
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंभावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
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