शुक्रवार, अक्टूबर 3

तू ही भरे रंग माया के

तू ही भरे रंग माया के


भाव सभी अर्पित करते हैं 

प्रेम और करुणा जो तुझसे, 

पल-पल इस जग में झरते हैं 

कष्ट हमारा हर हरते हैं !


मधुर तृप्ति का भाव जगा जो 

अतृप्ति का भी घाव लगा जो, 

चैन और बेचैनी उर की 

तेरे चरणों पर रखते हैं !


शांति औ' आनंद की मूरत 

देवी ! तू अज्ञान को हरे, 

तू ही भरे रंग माया के

हर वर माथे पर धरते हैं !


जगे परम स्वीकार ह्रदय में 

विश्रांति मिल जाये चरण में, 

मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार में 

ध्यान सदा तेरा करते हैं ! 


देवी ! तेरे रूप हज़ारों 

कथा अनेकों, नाम हज़ारों, 

किस-किस को जाने यह लघु मन 

तुझमें ही जीते मरते हैं !



12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार, 5 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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