चक्र से बाहर
आने दो यादों के बादल
छाने दो भावों के बादल,
वर्तमान का नभ अनंत है
तिरने दो शब्दों के बादल !
उड़ें हवा संग, हों काफ़ूर
बहकर यहाँ से जायें दूर,
नीला गगन स्वच्छ निर्मल पर
सदा अचल, रहे अडिग हुज़ूर !
तुम भी तो कुछ उसके जैसे
कहाँ ख़त्म होती है सीमा,
हर पल नया रूप धर आये
दिखे न परिवर्तन, हो धीमा !
माना जाह्नवी अति पुरातन
जल इस क्षण में नया आ रहा,
एक चक्र में घूमती सृष्टि
हो जो बाहर, वही देखता !
आने दो यादों के बादल
जवाब देंहटाएंछाने दो भावों के बादल,
वर्तमान का नभ अनंत है
तिरने दो शब्दों के बादल !
बहुत सुंदर काव्य पंक्तियाँ भावपूर्ण सरस अभिव्यक्ति बेरोकटोक
स्वागत व आभार प्रियंका जी!
हटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ७ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी!
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंआने दो यादों के बादल
जवाब देंहटाएंछाने दो भावों के बादल,
वर्तमान का नभ अनंत है
तिरने दो शब्दों के बादल !
सोच को विस्तार देती भावपूर्ण रचना । सादर नमस्कार अनीता जी !
स्वागत व आभार मीना जी!
हटाएंअनंत प्रकृति में अनत गगन ... बादल यादों के सिमित कर देते हैं आकाश ...
जवाब देंहटाएंफिर भी गगन असीम ही रहता है!!
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